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दो से चार -05-Jan-2022

भाग 10 


आशा का मन आज बहुत विचलित हो गया था । जिस तरह उसके बोगस नाम पर कुमार ने प्रतिक्रिया व्यक्त की उसने आशा को चिंता में डाल दिया था । पता नहीं कुमार उस पर विश्वास करेंगे या नहीं ? वह सोचने लगी कि साहित्यिक एप पर तो अधिकांश महिलाओं की आई डी फेक ही है । ज्यादातर लेखिकाओं ने अपना सही नाम और पता नहीं लिखा है वहां पर । फिर उसने ऐसा क्या ग़लत किया है ? जब उन्होंने (कुमार ने) पूछा तब सब कुछ सच सच बता दिया था उसने और वह भी पूरे सबूत के साथ  । और भला कैसे यकीन दिलाएं हम कि हम "फेक" नहीं हैं । क्या करें ऐसा कि उनको विश्वास हो जाए कि हम सच्चे हैं , झूठे नहीं । उसके दिमाग में यही बात चल रही थी ।

इसी उधेड़बुन में वह लगी रही । ना तो उसने ढंग से खाना खाया और ना ही उसका किसी काम में मन ही लगा । और तो और नव्या की दोनों बेटियां जो उससे बहुत हिलमिल गईं थीं , आज उनके साथ खेलने की भी इच्छा नहीं हो रही थी उसकी । वह बेचैन होकर मछली की तरह तड़पने लगी ।

नव्या को उसकी हालत समझते देर न लगी । उसने इशारे में पूछा "लेखक महोदय की तबीयत तो ठीक है न मौसी" ? और वह विशेष अंदाज में मुस्कुराई ।

आशा उसका इशारा और उसकी मुस्कुराहट का मर्म समझ गई । कहने लगी "उन्हें शक के वायरस ने काट लिया है, नव्या । तूने जो मेरी फेक आई डी बनाई थी न साहित्यिक एप पर , वही मेरी दुश्मन बन गई है । कुमार को लगता है कि जब आई डी ही फेक है तो पता नहीं और क्या क्या फेक होगा । हमने अपना फोटो और आधार कार्ड भी भेज दिया मगर अभी तक वे असमंजस में हैं " । 

नव्या ने सारा माजरा समझा और कहा "एक तरह से देखा जाए मौसी तो कुमार साहब भी ग़लत नहीं हैं । आजकल लोग पता नहीं फेक आईडी बनवा कर क्या क्या नहीं करते हैं ? विशेषकर लड़कियां । बहुत सारी लड़कियों मर्दो को  "हनी ट्रैप" में फंसाकर उन्हें ब्लैकमेल करती हैं । या फिर किसी को सार्वजनिक रूप से बदनाम, प्रताड़ित करती हैं । चाहे कुछ भी हो पर एक बात तो तय है कि ये कुमार साहब मुझे तो एकदम चौबीस कैरेट सोना लग रहे हैं । वरना जिस तरह से आप उनके सामने दाने फेंक रहीं हैं उससे पता नहीं कितने "मियां मिट्ठू" खिंचे चले आते । अगर कुमार साहब समय ले रहे हैं तो इसका मतलब ये है कि वे एक सच्चे इंसान हैं और आपने बिल्कुल सही आदमी को पकड़ा है" । वह शरारत के साथ चुहलबाजी पर उतर आई ।

"हां नव्या , मैं तो उनकी रचनाओं से ही समझ गई थी कि वे एक सच्चे , एकदम खरे और बहुत हंसमुख मिजाज के व्यक्ति हैं । देख , यह बात मैं तुझसे बता रही हूं , तू इधर उधर मत कर देना । सच्ची बात तो यह है कि हमें उनसे प्यार हो गया है"

ऐसा कहकर आशा नव्या को बांहों में कस लिया और आंखें बंद कर लीं जैसे कि वह आंखों में कुमार को ऐसे बंद कर लेगी कि वह चाहकर भी बाहर नहीं निकल सके । 

नव्या अपनी मौसी की यह हालत देख रही थी और सोच रही थी कि हे भगवान , मेरी मौसी के जीवन में दस वर्षों के भयानक झंझावातों के थपेड़े , लू के भड़कते शोले , मरुस्थल के कांटे और सागर के जैसी अंतहीन उदासी के बाद  आज उसकी जिंदगी में किसी के प्यार का सावन आया है । बहारें उसके दिल के दरवाजे पर दस्तक दे रहीं हैं । रिमझिम फुहारों में वह भीगने को तत्पर है । ऐसे में अब उसका दिल मत तोड़ना , प्रभु । अब उसमें सहन करने की शक्ति नहीं है । उस बेवफा अनिल ने मौसी को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी । बड़ी मुश्किल से उस हादसे से ये बाहर आईं हैं । आजकल कुमार के प्यार में दिन भर मुसकुरातीं रहती हैं । जिसके चेहरे पर एक मुस्कान देखने के लिए हम तरस जाते थे , वही मौसी अब दिनभर खिलखिलातीं रहतीं हैं । प्यार में बहुत ताकत होती है प्रभु , अब मैं यह ताकत साक्षात् देख रही हूं । इस प्यार को अपने अंजाम तक पहुंचाना प्रभु" । उसके हाथ दुआ की मुद्रा में उठ गये ।

अचानक जैसे नव्या को कुछ याद आया और वह अपनी मौसी से कहने लगी । " मौसी , तुम कल दो बजे फिर से चैट करोगे" ? 
"हां , क्योंकि उन्होंने मना तो किया नहीं है न" । 
"तो फिर मेरी एक बात मानोगे" ? 
"हां बोल , मानूंगी क्यों नहीं । तू तो अब मेरी बेटी नहीं वरन सहेली बन गई है न और अगर तेरी सलाह से मुझे कुमार मिल जाते हैं तो मैं तुझे 'लव गुरु' मान लूंगी" । आशा थोड़ी हंसते हुए बोली । 

"आप अपनी ओर से कोई फोन मत करना" । नव्या ने कहा ।

"धत्त तेरे की । तू फोन करने की बात कह रही है ? उन्होंने तो अभी तक एक बार भी फोन नहीं किया है । एक दिन मैंने कहा भी था कि चैट के बजाय फोन पर बात करते हैं न। तो मालूम है उन्होंने क्या कहा " ? 
"क्या कहा" ? 
"यही कि, नहीं । फोन पर कोई बात नहीं होगी और जब तक मैं नहीं कह दूं , तुम फोन करोगी भी नहीं । अब भला मेरी इतनी हिम्मत कहां कि मैं उनकी बात टालूं" । 

नव्या की जोर से हंसी फूट पड़ी । आशा और दोनों बच्चियां उसे ऐसे देखने लगीं कि कहीं यह पागल तो नहीं हो गई है । आखिर आशा ने कहा " इसमें हंसने की क्या बात है , भूतनी" ? 

नव्या बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी पर काबू करते हुए बोली "पहले आप वचन दो कि आप गुस्सा नहीं करोगी" ? 
"हां, दिया । अब बोल" ? 

" हम देख रहे हैं मौसी कि क्या आप वही आशा मौसी हैं जिनसे पूरा घर थर्राता था । और तो और नानी से लेकर मामा , मामी सभी डरते हैं आपसे । आपको सब लोग 'तुनक मिजाज' कहते हैं । आज वही आशा मौसी भीगी बिल्ली की तरह डरी सहमी सी है" । 

आशा को लगा कि नव्या बात तो सही कह रही है । उसकी मर्जी के बिना उससे कोई कुछ भी नहीं करा सकता है । मगर आज इतनी क्यों डर रही है ? क्या उसका विश्वास अपने 'भगवान' से भी उठ गया है। उसे लगा कि उसे भगवान की शरण में ही जाना चाहिए । यह सोचकर वह उठने लगी । 

नव्या उसे रोकते हुए बोली "अभी मेरी बात पूरी भी कहां हुई है , जो आप ऐसे उठकर जाने लगीं । मैं कह रही थी कि चलो फोन पर बातें नहीं करते हो तो कोई बात नहीं , मगर आप अपनी ओर से कोई मैसेज भी मत भेजना। बस, इतनी सी बात मान लो तुम" । 
"ठीक है" । यह कहकर आशा अपने भगवान की पूजा के लिए चली गई । भगवान से कहने लगी "भगवान मैंने ऐसे क्या पाप किए हैं जो मुझ पर इतनी बेरहमी की बरसात कर रहे हैं आप । मैंने क्या मांगा है आपसे अब तक ? केवल प्यार ही तो मांगा है ना । धन दौलत तो नहीं मांगी ना । आपने पहले मुझे अनिल से मिलाया । मैंने कितने सालों तक इंतजार किया था उसका ? जब वह कुछ नहीं था , दर दर की ठोकरें खा रहा था । बार बार असफल हो रहा था । टूटता जा रहा था । मगर मैंने उसे ढांढस बंधाया । हिम्मत दिलाई और उसके साथ खड़ी रही । मगर वो ऐसा नालायक निकला कि आई ए एस बनने के बाद एक आई ए एस से चुपचाप शादी कर ली । इसमें मेरा क्या कसूर था , प्रभु । मैं कितनी टूट गई थी तब । पूरे चार साल लगे मुझे उस हादसे से बाहर आने में । अब मेरे दिल में फिर से एक प्यार की कोंपल खिलने लगी है । उसे पूरा फूल बनने से पहले ही खत्म मत कर देना भगवन्" । उसकी दोनों आंखों से आंसुओं की धार बह चली । वह पूरी भीग गई थी उन आंसुओं से । मन थोड़ा शांत हो गया था उसका । 

आशा ने बच्चियों को खाना खिलाया और खुद ने भी खाना खाया । फिर वह सोने चली गई । नींद तो उसे वैसे भी कम ही आती थी इसलिए साहित्यिक एप खोलकर बैठ गई ।

नोटिफिकेशन देखा तो वहां पर कुमार की एक ताजा कविता पोस्ट की हुई थी । शीर्षक था "असमंजस" 
कविता इस तरह से थी 

तुम भोर की किरण सी लगती हो 
मगर डरता हूं कि कहीं 
दोपहर की चिलचिलाती धूप ना बन जाओ 
और इतना पसीना ना दे दो 
कि मैं उसमें नहा लूं । 

तुम बसन्त की बहार सी लगती हो 
मगर डरता हूं कि कहीं तुम
पतझड़ साबित हुई तो क्या होगा ? 
मैं खुद एक प्यासा सावन की तरह हूं 
फिर पतझड़ में कैसे रह पाऊंगा । 

तुम एक चंचल , निर्मल झरने की तरह लगती हो 
मगर डरता हूं कि कहीं 
भयंकर झंझावात के आवेश में 
यह झरना मुझे बहाकर ले गया तो क्या होगा ? 
मेरा तो अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा । 

तुम कमल के फूल की तरह स्निग्ध लगती हो 
मगर डरता हूं कि कहीं 
उस कीचड़ के छींटें मुझ पर लग गए तो ? 
दाग़ मुझे अच्छे नहीं लगते हैं । 

इस कविता को उसने बार बार पढ़ा । उसे लगा कि कुमार इस कविता के माध्यम से अपने दिल की कशमकश बयां कर रहे हैं । वह समीक्षा करने बैठी लेकिन अचानक उसे नव्या की बात याद आ गई । आज कुछ नहीं लिखना है । वह एक बार तो लिखने बैठ ही गई थी । समीक्षा लिख भी ली मगर पोस्ट नहीं की । कुमार को तो पता नहीं कशमकश थी या नहीं मगर आशा की कशमकश का कोई अंत नहीं था । अंत में उसने वह समीक्षा डिलीट कर दी । हालांकि उसका मन इसके लिए तैयार नहीं था ।


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3 Comments

Seema Priyadarshini sahay

27-Jan-2022 09:32 PM

बहुत ही मजेदार भाग है

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Shalu

07-Jan-2022 02:07 PM

Bahut badiya

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Hari Shanker Goyal "Hari"

07-Jan-2022 02:55 PM

Thanks

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